बेटी हूँ ना !

मैं रोऊँगी नहीं
मैं पूछूँगी भी नहीं
बेटी हूँ न!

 
हो सकता है !
मै उन्हें बोझ लगती हूँ,
मेरे लिये प्यार बचा ही न हो !
शायद, एक ही खिलौना बचा था,
'पुष्प' के लिये ले आये
क्यों ?
पूछूँगी नही
रोऊँगी भी नही
बेटी हूँ न !



शैतानी 'पुष्प' करता हो,
और डांट मुझे पड़े!
'पुष्प' सोता रहे!
मैं काम करूँ
मेरे लिये जली रोटियाँ ही बचे! 
क्यों ?
मैं पूछूँगी नहीं
मैं रोऊँगी भी नहीं
बेटी हूँ न !

बेटी पराई होती है
उसे अपना घर जाना है
वो वहाँ की नूर होती है
ऐसा माँ कहती है
क्यों ?
मैं पूछूँगी नहीं
मैं रोऊँगी भी नहीं
बेटी हूँ न !

मुझे पता है
एक दिन मैं किसी और को सौंपी जाऊँगी!
वह अंजाना होगा
बेगाना होगा
परवाना होगा
हाय ! मेरा जीवन कैसा होगा !
क्या मुझे भी अग्निपरीक्षा देनी होगी ?
क्या मुझे भी आग के हवाले किया जायेगा?
क्यों ?
मैं पूछूँगी नहीं!
मैं रोऊँगी भी नहीं !
बेटी हूँ न !  

                                                    

माँ..... मैं रोऊँगी 
खूब रोऊँगी.....
और पूछूंगी भी!
जब मेरे 'पुष्प' की कलाई सुनी रह जायेगी
जब तुम्हारे आँखों में आंशू होंगे
जब पापा का चेहरा उदास होंगा
तब... मैं रोऊँगी...!
पूछूँगी भी..
क्यों?
बेटी हूँ न.....।
- मणिकांत पाण्डेय 'वैरागी' 

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