सोचता हूँ... लौट आ माँ....!!!
"लौट आ मां " सोचता हूँ... लौट आ माँ.... ढूंढता हूँ अब तुझे में.... रात की गहराइयों में.... मौत की परछाइयों में ..... दर्द की तन्हाइयों में...... डर लगता ये बसेरा..... सोचता हूँ, लौट आ माँ.... ढूंढता हूँ अब तुझे में .........!!! चीखता है ये अँधेरा.... कौंधता है जग ये सारा.... फिर से कोई कर इशारा.... सोचता हूँ, लौट आ माँ..... ढूंढता हूँ अब तुझे में.......!!! सूना है समसान सारा.... घर आंगन द्वार तेरा.... फिर से कोई हो सवेरा.... देखता हूँ रूप तेरा...... सोचता हूँ, लौट आ माँ..... ढूंढता हूँ अब तुझे में.....!!! हर घड़ी रुसवाई.... मौत की परछाई.... काल कवलित हो रहा हूँ.... खुद से खुद को खो रहा हूँ.... रक्तरंजित पाँव है... धूपवाली छाँव है.... दर्द आहें भर रहा हूँ.... आ बचाले आज मुझको.... प्रार्थना है नम्र तुझको.... सोचता हूँ, लौट आ माँ... ढूंढता हूँ अब तुझे में.....!!! -मणिकांत पाण्डेय" वैरागी" चित्राभार - गूगल