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Showing posts from March, 2022

श्री सतुआ बाबा - परोपकार के आदर्श

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जीव जब जन्म लेता है तो, जन्म लेते ही उसके ऊपर कई प्रकार के ऋण अर्थात जिम्मेदारियां होती हैं, तथा इन्हीं जिम्मेदारियों का वहन करना उसका कर्तव्य होता है। हर इंसान समाज से कुछ न कुछ लेता है या, हम यूं कहें कि वह जो कुछ लेता है वह समाज से ही लेता है। इसलिए उसे समाज के लिए भी कुछ ना कुछ अवश्य करना चाहिए ताकि समाज एक दूसरे के साथ मिलकर निरंतर प्रगति कर सके। इसलिए यह प्रकृति का नियम है कि हमें समाज को कुछ ना कुछ देना होता है। अब यहां एक प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि क्या केवल मानव ही समाज से आदान-प्रदान करता है? इसका उत्तर है, नहीं ! धरती पर पलने वाले सभी जीव- जंतु प्रकृति के इस नियम का सुंदर पालन करते हैं। परंतु समाज में कुछ अपवाद भी हैं, अर्थात कुछ लोग ऐसे भी हैं समाज से बहुत कुछ बहुत कुछ लेना तो चाहते हैं पर देना नहीं चाहते और समाज को क्षति भी पहुंचाते हैं, पर इसी समाज में कुछ विभूति ऐसे भी हैं जो केवल समाज, मानवता और उसकी भलाई के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। इन्हीं विभूतियों में से एक हैं अप्रतिम एवं अनन्य प्रातः स्मरणीय श्री सतुआ बाबा एवं सतुआ बाबा आश्रम ।

वर्षा - जीवन का दूसरा नाम

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"वर्षा”   कितना प्यारा, नाम तुम्हारा नाम से प्यारा, काम तुम्हारा वृष अच् टाप् से बनी हो तुम आशाओं से सजी हो तुम तुम से ही है, धरा ये अंबर,। सूरज चंदा और समंदर , तुम से ही है देश की शान राजा रंक और किसान ।। तुम नही आती तो मैं न आता, धरती मां को कौन सजाता, माता बहनें रह न पाती, मुनिया बेटी भूखी सो जाती। तुम बिन रहना गवारा नहीं, हमने तुम्हें बिसराया नहीं तुम भूल कभी हमें जाना नहीं मैं तुमसे हूं तुमने पहचाना नहीं।। हे ! वर्षा क्या तुम्हें ध्यान है? तुम न आई हम परेशान हैं एक बात तुम ध्यान ये रखना ऐसी कभी तुम भूल न करना तुम हो जीवन देने वाली  करती हो सबकी रखवाली तुमसे ही मुझमें जान है  मेरे शब्दों में भी प्राण है “मणि” देता है संदेश यहां पर, कोई प्यासा न रहे धरा पर, इसलिए बूंद - बूंद बचाओ भैया कहीं प्यासी है गैय्या मैय्या ॥ - मणिकांत पाण्डेय " वैरागी" चित्राभार - गूगल