वर्षा - जीवन का दूसरा नाम

"वर्षा”


 
कितना प्यारा, नाम तुम्हारा
नाम से प्यारा, काम तुम्हारा
वृष अच् टाप् से बनी हो तुम
आशाओं से सजी हो तुम
तुम से ही है, धरा ये अंबर,।
सूरज चंदा और समंदर ,
तुम से ही है देश की शान
राजा रंक और किसान ।।

तुम नही आती तो मैं न आता,
धरती मां को कौन सजाता,
माता बहनें रह न पाती,
मुनिया बेटी भूखी सो जाती।
तुम बिन रहना गवारा नहीं,
हमने तुम्हें बिसराया नहीं
तुम भूल कभी हमें जाना नहीं
मैं तुमसे हूं तुमने पहचाना नहीं।।



हे ! वर्षा क्या तुम्हें ध्यान है?
तुम न आई हम परेशान हैं
एक बात तुम ध्यान ये रखना
ऐसी कभी तुम भूल न करना
तुम हो जीवन देने वाली 
करती हो सबकी रखवाली
तुमसे ही मुझमें जान है 
मेरे शब्दों में भी प्राण है


“मणि” देता है संदेश यहां पर,
कोई प्यासा न रहे धरा पर,
इसलिए बूंद - बूंद बचाओ भैया
कहीं प्यासी है गैय्या मैय्या ॥

- मणिकांत पाण्डेय " वैरागी"
चित्राभार - गूगल

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