श्री सतुआ बाबा - परोपकार के आदर्श

जीव जब जन्म लेता है तो, जन्म लेते ही उसके ऊपर कई प्रकार के ऋण अर्थात जिम्मेदारियां होती हैं, तथा इन्हीं जिम्मेदारियों का वहन करना उसका कर्तव्य होता है। हर इंसान समाज से कुछ न कुछ लेता है या, हम यूं कहें कि वह जो कुछ लेता है वह समाज से ही लेता है। इसलिए उसे समाज के लिए भी कुछ ना कुछ अवश्य करना चाहिए ताकि समाज एक दूसरे के साथ मिलकर निरंतर प्रगति कर सके। इसलिए यह प्रकृति का नियम है कि हमें समाज को कुछ ना कुछ देना होता है। अब यहां एक प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि क्या केवल मानव ही समाज से आदान-प्रदान करता है? इसका उत्तर है, नहीं ! धरती पर पलने वाले सभी जीव- जंतु प्रकृति के इस नियम का सुंदर पालन करते हैं। परंतु समाज में कुछ अपवाद भी हैं, अर्थात कुछ लोग ऐसे भी हैं समाज से बहुत कुछ बहुत कुछ लेना तो चाहते हैं पर देना नहीं चाहते और समाज को क्षति भी पहुंचाते हैं, पर इसी समाज में कुछ विभूति ऐसे भी हैं जो केवल समाज, मानवता और उसकी भलाई के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। इन्हीं विभूतियों में से एक हैं अप्रतिम एवं अनन्य प्रातः स्मरणीय श्री सतुआ बाबा एवं सतुआ बाबा आश्रम ।
 आज से लगभग 290 वर्ष पूर्व 1734 में प्रथम सतुआ बाबा श्री रणछोड़ दास जी महाराज ने काशी के पावन मणिकर्णिका घाट पर श्री सतुआ बाबा आश्रम की स्थापना जिस उद्देश्य व भावना से की थी वह आज भी सप्तम सतुआ बाबा महामंडलेश्वर श्री संतोष दास जी महाराज के मार्गदर्शन उसी प्रकार अनवरत चल रहा है या हम यूं कहें कि आज यह बढ़कर  वटवृक्ष के समान विशालकाय हो गया है। संस्कृत का एक बहुत ही प्रसिद्ध श्लोक है -
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् | परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम् ||
अर्थात् परोपकार या सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है कहा भी गया है "सेवा परमो धर्म"। 
इस कथन को चरितार्थ करते हुए श्री सतुआ बाबा ने समाज के सामने एक विशाल उदाहरण प्रस्तुत किया है।
सतुआ बाबा का सामाजिक कार्य -
शिक्षा समाज का दर्पण है अर्थात् शिक्षा ही है जो समाज को सत्य से साक्षात्कार कराती है इसलिए यह अति आवश्यक है। इस बात को समझकर श्री सतुआ बाबा ने आश्रम एवं इसके सभी शाखाओं में पूर्णतः निशुल्क शिक्षा, आवास, वस्त्र भोजन, पुस्तक  सहित सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। आश्रम में छात्रों को वेद, वेदांग सहित पुराण, उपनिषद, रामायण, ज्योतिष सहित सभी विद्याएं दी जाती है।
इसके अतिरिक्त सतुआ बाबा आश्रम एवं इसके सभी शाखाओं में -
क. अन्नक्षेत्र - जहां आने वाले समस्त श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाता है तथा प्रातः गरीबों हेतु निःशुल्क खिचड़ी का वितरण किया जाता है।
ख. योगकेंद्र - समाज को जितना शिक्षा की आवश्यकता है उतनी ही स्वास्थ्य की भी आवश्यकता है। कहा जाता है कि किसी देश की स्वस्थ आबादी किसी धन से कम नहीं होता है एवं वह एक प्रमुख संसाधन है। इस बात को समझकर श्री सतुआ बाबा ने आश्रम में योगकेंद की स्थापना कराई। योगासन के माध्यम से हम  अपने आप को न केवल  स्वस्थ रख सकते हैं अपितु इम्यूनिटी पावर को भी बढ़ा सकते हैं। योग के महत्व को आज दुनिया जानती और मानती है। आश्रम एवं इसके सभी शाखाओं में छात्रों को तो योग की शिक्षा दी ही जाती है इसके अतिरिक्त आने वाले श्रद्धालुओं को भी, जो इच्छुक होते हैं उन्हें भी दी जाती है।
ग. गौशाला - समाज का कल्याण चाहते सभी हैं पर करना कोई नहीं चाहता । आज समाज में गाय की स्थिति दयनीय है। लोग उन गायों को छोड़ देते हैं जो बूढ़ी हो जाने के कारण दूध देने में असक्षम हो जाती है। जिससे वे दर दर भटकती है कूड़े करकट को खाकर बीमार पड़ जाती है। श्री सतुआ बाबा आश्रम ने उन गायों एवं अन्य गायों के लिए समुचित व्यवस्था किया है तथा गौशाला से प्राप्त होने वाले गोरस को आश्रम एवं छात्रों के लिए उपयोग किया जाता है। 
घ. कर्मकांड केंद्र
ङ.ज्योतिष विज्ञान केंद्र
च. धर्म विज्ञान केंद्र
छ.संत निवास

इसके अतिरिक्त आश्रम द्वारा पोषित व संचालित कई चिकित्सालय हैं जहां से प्रत्येक दिन लाखों स्वास्थ्यार्थी लाभान्वित होते हैं जहां आधुनिक एवं पारंपरिक तरीके से उनकी चिकित्सा की जाती है।  
 आश्रम के द्वारा दी जाने वाली सेवाओं  का लाभ न  केवल संपूर्ण भारत से बल्कि नेपाल , भूटान सहित विश्व के कई देशों से आए श्रद्धालु  लेते हैं।  वाराणसी के मणिकर्णिका घाट स्थित श्री सतुआ बाबा आश्रम देश विदेश से आए सभी श्रद्धालुओं एवं टूरिस्टों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है।


चित्राभार - गूगल
लेखक - मणिकांत पाण्डेय
पूर्व छात्रसेवक - श्री सतुआ बाबा आश्रम 

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