सच, कितना सच है।

सच, कितना सच है
इतना या इतना या थोड़ा और ज्यादा
नहीं नहीं सच उतना भी सच नहीं है
जितना तुम समझते हो।
सच दूर दिख रहे धूप में किसी जल की तरह है
जब पास जाओ तो कुछ है ही नहीं।
मृगतृष्णा की तरह यह भी झूठ है

सच छल है छलावा है और झूठ भी है
सच पूछो तो सच है ही नहीं।
सच कभी था
शबरी के बेर में
विदुर के छिलके में
शायद गोपियों के माखन में
गोपियों के झूठ में भी
जिसे हम तुम नहीं देख सकते ।

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